ज़िन्दगी कुछ इस तरह से गुज़रती गयी ,
कुछ उसकी याद में, कुछ उसकी आस में ,
कुछ उससे , कुछ उसी की बात में ,
मुट्ठियाँ बंद करता रहा, वो फिसलती गयी।कुछ लड़ते लड़ते, अंहम को लगी ठेस में।
कुछ नाराज़गी, कुछ अफ़सोस में ,
मैं चीखता रहा, वो दूर होती गयी।कुछ सोचने में, कुछ समझने में ,
कुछ गलतफहमियों से निकालने, निकलने में ,
बेबस खड़ा रहा, वो धीरे धीरे कहीं खोती गयी।कुछ बेकरारी, कुछ लाचारी में ,
कुछ अल्ल्हड़पन, कुछ खुमारी में ,
कभी खुद को कभी उसको ढूंढता रहा ,
जब मैं मिलता, तो वो धुंधला जाती ,
जब वो संभलती, तो मैं नहीं।
ज़िन्दगी बस कुछ इस तरह से गुज़र गयी…~रबी
[ Life went on a little like this…
A little in her memories, a little in her hope,
A little in talking with her, a little in talking about her,
I kept clinching my fists, and she kept slipping by.
Some in fighting, some in feeling the hurt on ego,
Some in resentment,some in regrets,
I kept yelling, she kept becoming distant.
Some in thinking, some in understanding,
Some in getting and pulling out of misunderstandings,
I stood there helpless, she faded away slowly.
Some in discomfort, some in helplessness,
Some in innocent stupidity, some in hangover,
Sometimes I would search for myself or for her,
When I would find myself, she would fade away,
When she would come in her sense, then I won’t be.
Life went by just like this…]