यही सवाल था

वो कोई तो जाना-पहचाना सा शख्स था, जिसका आँखों में आज अक्स था। कुछ धुंधली धुंधली सी उसकी परछाई थी, अचानक ही अहातों में उतर आयी थी। कुछ तो था जो वो कहना चाहता था, पर मेरे इर्द गिर्द तो बस एक घहरा सन्नाटा था, कानो तक पहुँचती उसकी सहमी सहमी सी साँसें थी, छिपी कहीं जिनमे दम तोड़ चुकी कुछ बातें थी। कुछ दूर बढे उसके मेरी तरफ कदम, फिर सिहर गए, हाथ उठे कुछ दिखाने को, पर ठहर गए, “पीछे मत देखना"… बस इतना कहा उसने फिर मुड़ गया, नहीं आया वो साया लौटकर, एक बार जो उड़ गया, धड़कने बढ़ चली, वहीं खड़ा रहा निस्तब्ध सा, मन तो बहुत किया, पर मुड़कर नहीं देखा। ...

January 9, 2014  · #149