घर से निकलना

क्यों मौसम बदला बदला है देखो, क्या इसने भी तुम्हारी अंगड़ाइयों की अदा सीख ली। क्यों चल रही है सर्द हवा बेवजह रुक रुक कर, क्या इन्होने भी तुम्हारी धड़कनो की संगत है कर ली। निकले तो खुशनुमा धूप थी, पहुँचते पहुँचते बरसात हो गयी , क्या तुमने ही आसमान को खिले चेहरे से गीली लटें छटकने की तामील दी। पेड़ हैं झूमते, पत्तियां हैं कांपती, बेलें थर्राती हैं, टहनियाँ हैं अलापती, क्या वजह हो सकती है, कुदरत से रिश्ता तोड़कर, अब तो बस सब तुम्हारी पायल का ही कहा सुनती। ...

March 11, 2014  · #163