शाम

चलो तुम्हे एक बात बताता हूँ कल की, मेरे सपने में थी, एक शाम अजीब सी, जहाँ तुम्हे सुकून मिले मेरी ख़ामोशी से, और तुम्हारी साँसे महके, मुझे मदहोशी दे। वहां तू राह भी थी, हमराही भी, कितना भी दूर जाऊं, तेरे करीब रहता था, तू ख़ुशी भी थी, नसीब भी, इसलिए मैं खुद को खुशनसीब कहता था। पर गम ना कर अगर ये सपना ही था सच नहीं, तू दिन तो जीले शिद्दत से, आएगी ऐसी शाम भी, हर दिन सपनो सा लगे इस बात पर चलो ज़ोर दें, क्यों हसरत सजा बैठे रहें एक दिन के अंजाम की। ...

November 17, 2019  · #419