तुम्हे ज़न्नत ले चलूँ
मुझे परवाह नहीं कोई मुझ पर लिखे , मैं मुन्तजिर हूँ उसका जिस पर मैं लिख सकूं, जिसपे हक हो मेरा, सिर्फ मेरा, कोई और नहीं, वो शायरी बने तो मैं खुद को शायर कह सकूं। कश्तियाँ आती तो बहुत हैं, लेकिन कोई रूकती नहीं, मैं फिर भी साहिलों के किनारे बैठा रहता हूँ। इस उम्मीद में कि कोई तो रुकेगा, कभी, कहेगा, चलो… तुम्हे ज़न्नत ले चलूँ। ~रबी [ I do not care if someone writes for me, I await the one for whom I can write, Who is rightfully mine, only mine, no one else’s, If she becomes the poetry, I can call myself poet. ...