फरवरी की धूप
तू फरवरी की धूप सी, गुनगुनी सी खिली खिली , तू ओस गहरी रात की, जैसे घास पे बिछी सो रही, तू हाथ की लकीर सी, किसी के नसीब में किसी के नहीं, तू दुआ किसी फ़कीर की, वो खुशनसीब जिसे मिल गयी। जिसकी तलब तो है सबको ही , तू चीनी में घुली ऐसी मिठास सी, मगर जो चाह कर भी ना मिल सकी, जैसे हया हो किसी हिजाब की। ...