फरवरी की धूप... एक बार फिर
मुरझाई थी फूल की कली , थी बेजान डाल बेल की , तेरे बसंत से खिल गयीं , जो फिर आ गयी… तू फरवरी की धूप सी। गुनगुनी खिली खिली। शिकायत तुझे इस बात की , तेरी प्यास से दिल बुझता नहीं , मगर ज़रा से में जो बुझ गयी , तेरी प्यास फिर किस काम की। तुझ बिन है रहती उदासी , तुझ संग बंध गयी ख़ुशी। अब तू है सब कुछ तभी , जो तू नहीं, तो कुछ नहीं। ...