सुकून-ओ-करार

है मिसरी सा, कानो में घुलता एक-एक लफ्ज़ तेरे प्यार का, लगे चौदवी का चाँद भी बेनूर, जो हो दीदार मेरे यार का, खनक है चूड़ी जैसी, उसकी कांच की बातों में, कभी गुजरे हो वो जिस ओर से, हम बैठे रहते हैं उन्ही राहों पे, जिसके ख़त्म हो जाने से आ जाए यकीन सुकून-ओ-करार का, मुझे रहता है इंतज़ार उसके ऐसे किसी इंतज़ार का। ~रबी [ Like sugar, her words melt in my ears, Even that glorious moon fades, when my love shows her face, When she talks, it sounds like the tinkling of her bangles, The way she took once, I keep sitting on that path waiting for her, At the end of which I get the belief of relief and peace, I wait to get such an opportunity to wait for her. ] ...

April 1, 2014  · #168

फरवरी की धूप

तू फरवरी की धूप सी, गुनगुनी सी खिली खिली , तू ओस गहरी रात की, जैसे घास पे बिछी सो रही, तू हाथ की लकीर सी, किसी के नसीब में किसी के नहीं, तू दुआ किसी फ़कीर की, वो खुशनसीब जिसे मिल गयी। जिसकी तलब तो है सबको ही , तू चीनी में घुली ऐसी मिठास सी, मगर जो चाह कर भी ना मिल सकी, जैसे हया हो किसी हिजाब की। ...

February 6, 2014  · #153

खरीद ही लिया!

लब्ज़ गिरते हैं उनके लबों से, शहद टपके है जैसे होटों से। झिल्मिलातीं हैं आँखें उठती-झुकती पलकों से, जुगनू झांकें हैं जैसे झरोखों से। मचल पड़ती है बालियाँ कभी-कभी कानो में, पत्तें लेते हों करवटें जैसे आहट-ए-हवाओं से। बनते जाते हैं निशाँ गीली मिट्टी में कदमो के, कोरे कागज़ पे उडेलता हो कोई अफसाना सिहाइयों से। … और सबसे बढ़कर, इतराने की उनकी ये अदा, कसम से मेहरुल, आज तो तुमने बन्दे को खरीद ही लिया! ...

January 14, 2013  · #111

हया

बेबाक बेफिक्र सी जब हया तू निकलती है, बेधड़क बेवजह ही दिल से आह सी निकलती है, बेकदर बेरुखी, पर इस दुनिया से क्या कहिये, बेरहम बेशरम, फिर भी ये मुझे ही कहती है। ~रबी [ Whenever you get out of home, shyness, My hearts skips a beat, it’s not fearless, But what can I say about this world, careless, It still considers me as the one, the shameless. ]

January 4, 2013  · #110

आदत  तुम्हारी

ना तुम मिल सके, ना तुम्हारा साया मयस्सर हुआ, जाते जाते फिर भी ये ख़ुमारी गयी नहीं। कई रातों से चाँद भी आधा ही निकला है, रुख पर पर्दा करने की आदत तुम्हारी गयी नहीं। ~रबी [ Couldn’t get you, neither your shadow, But still your intoxication hasn’t gone yet. For so many days I have seen only half of moon, Your habit of covering your face hasn’t gone yet. ] ...

September 25, 2012  · #95

ओ पाकीज़ा

ना कहना कभी भूलकर, “मुझ पर तुम शायरी लिखो”, मेरी नज़्में किसी बख़्श तुझे बयाँ ना कर पाएंगी, जा देख कभी आईने में कुछ देर खुद को, ओ पाकीज़ा, ख़ुदा की लिखी शायरी तुझे आप नज़र आ जायेगी। ~रबी [ Don’t ever say, “Write poetry on me”, My couplets will never be able to describe you, Go see yourself in mirror for a while, Oh pure soul, You will get to read the poetry written by the Lord. ] ...

August 19, 2012  · #90

क्यों बैठी हो उदास

क्यों बैठी हो उदास, चलो तुम्हें मैं एक काम नया देता हूँ। तुम पहनो नए-नए लिबास, मैं दाद नयी देता हूँ। तुम करो नयी शिकायतें, मैं फ़साद नए लेता हूँ। तुम गुनगुनाओ नयी पंक्तियाँ, मैं साज़ नए छेड़ता हूँ। तुम बनाओ ख़्वाबों के पुलिंदे नए, मैं साथ उनपे चलता हूँ। ना बैठोगी फिर कभी यूँ उदास, चलो एक काम तुम्हें ऐसा देता हूँ। ~रबी [ Why are you sitting alone, Come let me give you a little work. ...

August 14, 2012  · #87

एक सपना

चलो आज मिलकर एक सपना बुनें, जिसमे सिर्फ तुम रहो, और मुझे पनाह मिले, जहाँ और किसी का जिक्र न हो, जहां और किसी से इल्तिजा न रहे। गम का जिसमे निशाँ ना हो, आँसुओं को जिसमे जगह ना मिले, अगर कुछ रहे तो बस एक सुकूँ, ये यकीन, मैं तेरी, तू मेरी नींदों में रहे। एक सपना जो असलियत सा लगे, और हकीकत बुरा ख्वाब महसूस हो मुझे, जिसको देखूं तो जागने की तमन्ना न रहे, चलो आज मिलकर एक सपना बुनें। ...

August 5, 2012  · #84

मेहरुल

वाह मेहरुल! खेल ये तुमने अच्छा ही खेला, मुझसे अपना सब कुछ हार गयीं, बस एक मुझे ही जीत लिया! ~रबी [ Great Mehrul! You played such a clever game, You lost everything to me,but made sure you finally win me! ]

July 6, 2012  · #75

My Very Existence

To separate you from myself, Tell me how’s that even possible? But I will do if you insist, Just tell me one thing first, That where do I end and where you begin? When you are the extension of my very existence… ~RavS

May 29, 2012  · #66