अनकही बात
एक बात थी कहने को, जो अरमान बन रह गयी। दिल से तो निकली थी उफ़न के, पर ज़ुबान बंद रह गयी। तुझको पाया तो औरों की क्या कहें, खुद अपने हाथों की लकीरें दंग रह गयीं। कुछ इस कदर हारे हम तेरी आदतों से, मेरी हर अदा तेरी शोख़ियों के आगे कम रह गयी। मगर… ख़बर मिली रुख़सत होने की तेरी मुझे जब, लहू की बूँदें रगों में जम रह गयीं। ...