मेहुल
वो लफ्ज़ वो तराने, कागज पर लिखे गाने, तुझे हंसाने के बहाने कहीं संभाले हैं ना मेहुल। नाम तेरा सोंधा सा, मेरे होटों पर रुकता, जाते जाते लौट आता, क्यों है ना मेहुल। पानी में तेरी छपकियां, रात सोते मेरी थपकियां, लोरी सुनते सुनते झपकियां, याद आती हैं ना मेहुल। पुलिंदे अपनी तारीफ के, छत के किनारे बैठ के, हर शाम बंधवाना मुझसे, भुलाए नहीं हैं ना मेहुल। वह दिन चले गए, ना रही अब वो रातें, मैं बदल गया साथ मौसम के, तू मगर वही है ना मेहुल। ...