लौट आओ...

वहशियत तो ना कम कभी हुई है, ना कभी होगी। सुकून तो है वहां पे, पर ज़िन्दगी तो यहीं इंतज़ार कर रही। दर्द जो तुम्हें है, है तकलीफ मुझे भी। तुम्हें ज़िल्लत सहने का, मुझे वादा ना निभा पाने की। डर है तुम गुमनामी के अंधेरों ना खो जाओ कहीं , और मैं नहीं ढूँढ पाऊँगा तुमको सूरज की रौशनी में भी। चाहता तो बहुत था बनना, पर मैं इंसान हूँ तुम्हारा खुदा नहीं। पर मैं साथ रहूँगा जितना भी उसने मुझे ताकत है दी। कसम है मुझे मेरी खुशियों की, जो तुम्हारे काम आने में कहीं कोई कमी रह गयी , तो मान जाओ, खुद के लिए नहीं तो मेरे लिए ही सही। ...

December 25, 2014  · #302