नफ़रत की वजह
मैं भी चाहता हूँ करना, नफ़रत… औरों की तरह। मगर कोई ठोस वजह तो हो। तुम तुम हो, मैं नहीं। भला ये भी कोई वजह हुई? क्या पता तुम गलत ही हो, ना मालूम मुझे, पता नहीं। और फिर मुझे क्या ही लेना देना। मुझे अपनी गलतियों से फुरसत कहाँ। मगर ‘वो’ कहता है तुम गलत हो, नफ़रत करो! नफ़रत करो! भला ये भी कोई वजह हुई? चलो क्यों ना ऐसा करें… ना तुम मेरी मुश्किलें बढ़ाओ, ना मैं तेरी परेशानी का सबब बनूँ। मैं जियूँ अपनी जिंदगी, जैसे तैसे, और तुम्हें अपनी जीने दूँ। प्यार नहीं है तुमसे… सिर्फ इसलिए नफ़रत करूँ?! भला ये भी कोई वजह हुई? ...