हर्ज़

वैसे तो नहीं मानता मैं, ये रिवाज़ नए-नए त्योहारों के, जहां दुनिया बताती है, कहां, कब और क्या खरीदना है बाजारों से। मगर मां को एक दिन के लिए खुश देखा, तो लगा, नए रिवाज अपनाने में, इतना हर्ज़ भी क्या है? यूं बाजारी त्योहार मनाने में, इतना हर्ज़ भी क्या है? कौन सा साल भर मैं इतनी, कद्र करता ही हूं मां की, बाकी दिन वैसे भी मुझे खिलाकर, वो अकेले आधी रात को खाती है। घुटने का दर्द ना मैं याद रखता हूं, ना वो कभी अपने से याद दिलाती है। काश बाकी दिन भी पूछ लिया करूं, मां ये तेरा मर्ज़ भी क्या है? आज ड्यूटी निभाने को पूछा तो, यूं बाजारी त्योहार मनाने में, इतना हर्ज़ भी क्या है? ...

June 25, 2023  · #429

माँ  तुझे  मेरी  याद  तो  आएगी  ना ?

अपना आँचल मेरे सर से हटा कर, कंधे पर रखा ‘बोझ’ बता कर, किसी और को मेरा जिम्मा थमा कर, मुझे भूल तो नहीं जाएगी ना ? माँ तुझे मेरी याद तो आएगी ना ? क्यों बेटियां ही दूर जाती हैं माँ ? उम्र भर साथ नहीं रह सकती मैं, क्यों ना ? बदन तप रहा होगा, या होगा दर्द सर में, तू मुझे अब भी अपना हाल तो बताएगी ना? माँ तुझे मेरी याद तो आएगी ना ? ...

May 16, 2018  · #373

माँ

मत दो रोटी मुझको माँ, चाहे भूखा ही रहने दो, मत सुलाओ गोद में अपनी माँ, सारी रात चाहे जागने दो, मत सहलाओ माथा मेरा माँ, भूत से मुझको डरने दो, कर दो बंद कमरे में माँ, अँधेरे में चाहे सिसकने दो। पर मत नाराज हो माँ, मुझे रोना आता है… मुझसे तुम नाराज़ मत हो। जब तुम नाराज होती हो माँ, बहुत बुरा लगता है… तुम जब नाराज होती हो तो। ...

August 25, 2014  · #242