ना-इंसाफी
तू पास रहे न रहे, तेरे पास होने का एहसास काफ़ी है, जाना है तो दिल-ओ-दिमाग से जा, बस नज़रों से दूर जाना नाकाफ़ी है। जब तक जागूं, तब तक सब्र, जब सोऊं तो तेरी फ़िक्र सताती है, मेरा क्या कसूर फिर जो, तेरे ज़िक्र भर से रूह काँप जाती है। जाऊं चाहे किसी भी कोने में, साथ मेरे होती तेरी परछाई है। बिन बताये सर पर कूद जाना, ऐ घर दी छिपकली, ये तो बहुत ही ना-इंसाफी है! ...