आतिश
तुम करती थी इंतज़ार शरारों की छाँव में, मैं आतिशों की धूप में मुन्तज़िर रहता था। तुम ढूँढा करती थी मुझे शोर के समंदर में, मैं ख़ामोशी के दरिया में बहा करता था। मुझे तुम न मिली, मैं तुम्हे न मिल सका, सब कुछ छूट गया, बहुत कुछ मिलकर। जब गलतफहमी पलती रही यूँ दोपहर से रात भर, और कटती गई ज़िन्दगी पहर दो पहर। ~रबी [ You used to wait in the shades of sparks, I used to look for you under the sunshine. You used to search me in the sea of noise, I used to swim in the river of silence. ...