चाशनी  सी, गीली  हंसी

उसके क़दमों से होकर राहें निकला करती थीं , उसकी आँखों को छूकर रौशनी दिखा करती थी , उसकी साँसों में घुलकर खुशबू बहा करती थी , उसकी ऊँगली पकड़कर खुशियाँ चला करती थीं। ऐ खुदा, वो समा, फिर ज़रा, ले आइये। मुझे उसकी, चाशनी सी, गीली हंसी, फिर चाहिए। उसकी लटों में घुसके, ओस नहा लेती थी , उसके कानों में हौले से, लोरियाँ गा लेती थीं , उसके आँचल के तले शाम रहा करती थी। उसके आँचल के नीचे ही नींद सोया करती थी। ऐ खुदा, सुन ज़रा, मेरी फरमाइश ये , मुझे उसकी, चाशनी सी, गीली हंसी, फिर चाहिए। ...

February 17, 2015  · #315