कैसे मैं हँसाऊं तुम्हें

बिन छुए, बिन कुछ कहे , दूर बहुत दूर तुमसे बैठे , कैसे मैं हँसाऊं तुम्हें। बिना तुम्हें गुस्सा किये , बिना तुम्हें दर्द दिए , कैसे अपनी बेबसी का एहसास कराऊँ तुम्हें। तुम्हारी हर छोटी छोटी बात याद है मुझे , तुम्हारी आँखों से गिरा हर कतरा जेहेन में अब तक साफ़ है मेरे , पर कैसे मैं दिखाऊं तुम्हें। ये शर्मिंदगी, ये लाचारी , ये गुस्सा, ये उदासी , ये सब दिखावा तो नहीं। मुझे सच में बहुत लगता है , जब तुम्हें ठेस है लगती। अब कैसे विश्वास दिलाऊँ तुम्हें। ...

December 23, 2014  · #300