बिखरी-बिखरी

बिखरी-बिखरी सी थी ज़िन्दगी मेरी , तुम जो आये तो लगा ये संवर सी गयी। अकेली समझ डराती-धमकाती थी लोगों की नज़रें , तुम्हें देख मेरे साथ , वो भी सिहर सी गयीं। बुझी - बुझी मुरझाई सी थी काया जिसकी , तुम्हारे हाथों में पड़ वो भी निखर सी गयी। शिकायत हमें बस तुमसे थी इतनी सी, तुम्हें ज़िन्दगी में आने में सालों लग गए, पर तुम्हारे जाते हुए क़दमों में एक पल की हिचक ना थी। ...

February 2, 2012  · #28