ख्वाब

कुछ तो ऐसा रखते हो निगाहों में छुपाकर, जिसका इल्म हमको नहीं लगता है। की जिस भी ख्वाब पर तुम्हारी निगाहें पड़ जाती हैं, वो ख्वाब खुद को मुकम्मल समझने लगता है। ~रबी [ You definitely keep something hidden in your eyes, That we don’t come to know about, That whichever dream you fix your eyes upon, That dream starts to think yourself as complete. ]

July 29, 2014  · #233

निगाहें

“निगाहें” इन्ही निगाहों में तो दुनिया बस्ती है, इन्ही निगाहों में रोज सोती, रोज जगती है, ये निगाहें जो बोलती कहा सुनती है, इन्ही निगाहों से तो ज़रा रोती ज़रा हंसती है। ये निगाहें जिन्हे देख लें वो राना हो जाए, जो महरूम हो इन निगाहों से फना हो जाए, गर्द में भी उसे जन्नतें पनाह हो जाएँ, जो ये निगाहें किसी की आशना हो जाएँ। कोई समझा नहीं इन निगाहों की नवाज़िशें, अजब हैं, मगर लोग कहते हैं, यही निगाहें बा-खुदाई का सबब हैं, इन्ही निगाहों की तो वो निगाह-ए-क़वायद करते हैं, झूठ नहीं, इन्ही निगाहों को निगाह-ए-इनायत कहते हैं। ...

May 7, 2014  · #182

उसमे थोड़ा सच भी था

उसने कहा, मेरी आँखों में देखो और बताओ क्या दिखता है? मैंने कहा, निहायत ही घटिया ये सवाल कैसा है? उसने कहा बकवास बंद करो मुझे जानना है! मैंने कहा, अच्छा फिर सुनो, तुम्हारी आँखों पर मेरा क्या मानना है। वो सामने बैठी और गौर से सुनने लगी, मैंने गाला साफ़ कर दास्तान-ए-अँखियाँ शुरू की … क्या तुमने किसी बच्चे की आँखों में देखा है ? मासूमियत के सिवा उनमे कुछ और कभी मिलता है ? वो ही मासूमियत दिखती है तुम्हारी आँखों में। एक मासूमियत जो कभी घटती नहीं, एक मासूमियत जो कभी मिटटी नहीं। ...

April 27, 2014  · #179