अजीब-ओ-गरीब

जो कहना है कहा नहीं जाता, तुम अजीब-ओ-गरीब बातें करते हो। जो मैं पूरी कर नहीं सकता, न जाने कैसी-कैसी फरियादें करते हो। क्या सुनूँ, क्या समझूँ मैं, तुम क्या कहते, क्या छुपा कर रखते हो। न जाने क्यों लगता है तुम्हें, दवा नहीं मैं, इसलिए अपना मर्ज़ दबा कर रखते हो। छोड़ो, जब दूर जाते जाते थक जाओ, तो लौट आना, मैं कहाँ मिलूंगा, इसका पता तो तुम रखते हो। ...

March 24, 2015  · #321

What will you do with the thorn in your flesh?

A thorn in my flesh, It hurts every day. The more I want to walk away, The more it gets in the way. A constant reminder of my past, The stuffs I did, the mistakes I made. So deep, it now touches the bone, I can take it out, and move on. But, it could kill me to remove the thorn, From the extreme agony and blood loss. Not even sure, if I want to part from it, After all it’s a part of me now. ...

November 12, 2013  · #143