सुबह तेरी आवाज से शरू होती थी

सुबह तेरी आवाज से शरू होती थी , रात ढलती थी तेरे नाम से … बहुत कोशिश की, तुझे जेहन से निकालने की, तुम फिर भी आ जाते थे सपनो में कितने आराम से। तुम्हे क्या पता कितनी रातें हमने जाग कर गुजारी हैं, तुम्हे क्या पता कितने आंसूं हमने छिपकर हैं बहाए, तुम्हे तो लगता होगा तकलीफें सिर्फ तुम्ही को मिली हैं , तुम्हें क्या पता कितनी तकलीफ हम अपने अन्दर हैं दबाये। ...

October 5, 2014  · #255