सरकार
दुआ भींच के मुट्ठी में, दवा की कतारें लगती हैं। बोलियां सांसों की भी यहाँ बीमारों की लगती हैं। जो चिल्लाते हैं, बचे कुछ फरिश्ते इधर-उधर हैं, वरना सन्नाटा पसरा रहता है, ये मुर्दों का शहर है। जहाँ देखो मातम सा छाया लगता है, जैसे किसी बुरे सपने का साया लगता है। बंद कर लो, आँखें बंद करने से क्या होगा? कराहती चीखें, बिलबिलाती सिसकियों का, जैसे कोहराम सा आया लगता है। ...