इतना प्यार करना मुझे
ना भी कर पाऊँ बात तुमसे किसी मोड़ पर , तुम मेरी खामोशियाँ तो पहचानती हो न ? कभी रोकना उन्हें, और पूछना उनको, क्यों खामोशियाँ मेरी यूँ बदहवास हैं। क्यों जुबान मेरी लावारिस सी, क्यों आवाज आज बेआवाज है। शायद मेरी खामोशियों में कहीं दबा मिल जाऊँ मैं तुम्हें … ना भी सो पाऊँ मैं कभी रात भर, तुम मेरी बेचैनियाँ तो समझती हो न ? अपने तकिये तले सुला लेना मेरी बेचैनियों को, अपना आँचल ओढ़ा करके रात में। थपकियाँ लगा देना उन्हें , हलकी-हलकी आवाज में। और सोके उठें तो करना जिरह उनसे , क्यों बेचैनियों को चैन नहीं आज है। शायद जो मैं खुद भी नहीं जानता, वो बेचैनियाँ बता जाएँ तुम्हें … ...