सिरहाना

उसे नींद नहीं आती थी अक्सर आलम-ए-सरगोशियों में, डर जाता था वो अक्सर मेरी गैरमौजूदगी में, थक हार कर उसने मेरी धडकनों को अपना सिरहाना बना लिया। ~रबी [ He often could not sleep in the the presence of whispers, He would often get afraid in my absence, So he gave up, and made a pillow out of my heartbeats. ]

July 2, 2014  · #206

शरारत

जो बात अनकही रह गई, है खबर मुझको भी, है खबर तुमको भी, हैरान परेशान रहना सब कुछ कुछ जानकार भी, शरारत करने लगी हैं आपकी नादानियां भी। ~रबी [ What was left untold, I also know that, You know it too, To remain bewildered while knowing everything, Your innocence have started playing prank too. ]

July 1, 2014  · #205

कश्ती

बारिशें हों तुम पर कभी जो इनायतों की, कुछ दुआएं रोक लेना मेरे लिए भी, कश्ती बना कर तुम अपनी हथेलियों की। ~रबी [ If ever the favors rain on you, Please save a few drops of prayers for me too, Making a boat of your palm. ]

June 30, 2014  · #204

इत्मिनान

तुम पूछते हो इतने इत्मिनान से कभी कभी ऐसे, वो भी हम भूल से कह जाते हैं, जिन्हें हम कबके भुला बैठे थे … ~रबी [ Sometimes you so ask things so leisurely, I go on to divulge even all that, by mistake, Which I had forgotten a long time ago…]

June 29, 2014  · #203

शगुन

भले कुछ न दिखाई दे, तेरी आवाज हमेशा सुनाई दे, जो साँझ हो और आये शगुन मौत का, मैं ढलूँ धीरे धीरे… तेरी आवाज की परछाई में। ~रबी [ Even if I don’t see anything, I hope to hear your voice, When the evening comes and brings the auspicious time of death, I will go down slowly, in the shadow of your voice. ] ## This little piece has been in my draft for almost an year. I just couldn’t get my head around to completing the first two lines. I initially envisioned it as a full poem then tried to write a 4 liner and then asked friends for ideas. Nothing helped. ...

June 28, 2014  · #202

सुराख

रूह में सुराख हो तो दर्द रिस्ता है धीरे धीरे, रूह भीगती है दर्द में तो भूल जाते हैं सब नाते रिश्ते, कोई समझता ही नहीं इस लाइलाज रोग को, सिवाय उसके जिसकी रूह में खुद सुराख हो, दर्द सूखता भी नहीं, बहना रुकता भी नहीं, टूट जाता है परिंदा ये सुराख भरते भरते। ~रबी [ When there is a void in the soul, the pain trickles slowly, When the soul drenches in pain, all the relations get forgotten, No one understands this incurable disease, Except the one whose own soul has a void in it, The pain doesn’t dry, neither does it stop bleeding, The bird breaks down trying to fill that void. ] ...

June 27, 2014  · #201

आईना

एक दिन दिल सीने से निकाल कर रख दिया आईने के सामने, बोला, देख। देख कितना बदसूरत है तू। क्यों करता है फिर मोहब्बत किसी से, मैं हूँ न तेरे पास, फिर तुझे और किसी की जरूरत है क्यों? दिल ने आईना बड़े गौर से देखा, बोला, बदसूरत सही मैं, पर पाक हूँ। तुम मेरे साथ हो पर मैं तुम्हारा ना रहा, मैं तुम में धड़कता तो हूँ, पर दर्द मुझमे अब तुम्हारा ना रहा, और आईने में देखने की बात जाया ही करते हो तुम, मेरी बंदगी तो मोहब्बत से है बस, मोहब्बत करने वाला कभी हमारा ना रहा। ...

June 26, 2014  · #200

जलन

पता नहीं तुझसे इतनी जलन क्यों होती है, तुझे देखता हूँ खुश तो एक चुभन सी होती है, ये हैरान करने वाली बात नहीं तो और क्या है, क्योंकि तू परेशान हो तो भी एक घुटन सी होती है। शायद मुझे जलन तुझसे नहीं, ना तेरी ख़ुशी, ना तेरी हंसी-ओ-हालात से है, तेरी ख़ुशी में शरीक नहीं मैं, शायद जलन मुझे इस बात से है, कोई और तेरी ख़ुशी का जरिया है, ये मुझे बर्दाश्त नहीं, और तुझे इस बात की कतई जलन नहीं, जलन मुझे इस बात से है। ...

June 25, 2014  · #199

देहलीज़

मौत की देहलीज़ पर पहुँच कर याद आया मुझे, जो ज़िंदा पीछे छूट गए, अब उनसे मुलाकात ना होगी, ये देहलीज़ भी बेवफा ही लगती है बशर, जो पार बैठे हैं, उन्हें भी मेरी सूरत याद ना होगी। ~रबी [ When I reached the doorsteps of death, I remembered, Those who are left behind, I won’t be able to meet them anymore, And these doorsteps also seem disloyal to me, my friend, Those who are sitting across, they also won’t remember my face. ] ...

June 24, 2014  · #198

तहज़ीब

गलतफ़हमियों में तुम भी जीते हो, गलतफहमियों में हम भी पलते हैं, क्या आवाज उठायें, जो गर तुम हो गलत भी, जो हम खुद अक्सर गलतियां करते चलते हैं। बदतमीज़ी की नुमाइश करने वालों की दुनिया में फिर भी कमी नहीं, तहज़ीब को आहिस्ता से परोसने वाले कम ही मिलते हैं। ~रबी [ You also live in misunderstandings, We also thrive in misunderstandings, Why raise our voice, even if you are wrong, When we often make mistakes ourselves. Even then there is no shortage of those eager to exhibit their insolence, Dearth is of those who softly serve their mannerism. ] ...

June 23, 2014  · #197