आँखें बंद करता था तो...
आँखें बंद करता था, तो नजर आता था, एक लहराता आँचल, एक ठहरा दरिया, टप टप करता झरना, तुम्हारे आने की आहट में, भीनी भीनी सी खामोशी, एक सुबह सोई सोई सी। एक बहती खुशबू हवा में, जो तुझसे पहले तेरे आने का पैगाम दे जाती थी , एक सिली सी नमी फिजा में , तेरे बालों से होकर मेरे चहरे को जो छू जाती थी। एक रास्ता संकरा सा, जिसपे हम चला करते थे, धीरे धीरे होले होले, बेसुध से, घंटों बातें किया करते थे। एक पीली पीली धूप चलती थी आगे आगे, जैसे हरे गलीचे पे रास्ता दिखाती हो। या कहीं ऐसा तो नही था, तेरे पैरों से लिपटने को, हर सुबह सब छोड़ कर चली आती हो। अब क्या पता, उसे भी तो तेरे साथ रहना पसंद था। ...