मैं कश्ती हूँ, मैं बहूँगा,
थोड़े जल की बस ज़रूरत है।
मैं लफ्ज़ हूँ, मैं रहूँगा,
चढ़ने की लबों पे ये कुव्वत है।

जो देखे थे तूने सपने,
वो ख़्वाब अब भी पाले हूँ।
तेरी आँखों से गिरे कतरे,
मैं अब भी उन्हें संभाले हूँ।

मैं सुबह हूँ, मैं लौटूँगा,
बस रात ढलने की ही देरी है।
मैं आग हूँ, मैं देहकूँगा।
चिंगारी लगने की बारी मेरी है।

ये ज़ंजीर मुझको काटे हैं,
मुझे इनसे तू कट जाने दे।
मैं हल्का सा ही जी लूँगा,
फिर चाहे पूरा मर जाने दे।

मैं ख़ुदा हूँ, मैं ख़ुदी का,
मुझमे अब भी इतनी ज़ुर्रत है।
मैं कश्ती हूँ, मैं बहूँगा,
थोड़े जल की बस ज़रूरत है।

~रबी  

[ I’m a boat, I’ll float,
Just some water is needed.
I’m a word, I’ll stay,
I’ve the power to be on everyone’s lips.

The dreams that you saw,
I still have those dreams.
The tears that dropped from your eyes,
I’ve still kept them safe.

I’m morning, I’ll return,
Just wait for the night to end.
I’m a fire, I’ll spread,
It’s my turn to spark.

These chains bite me,
Let me cut off from them.
I’ll live a little bit,
Then let me die completely.

I’m God of my own,
I still have so much audacity.
I’m a boat, I’ll float,
Just some water is needed. ]

## Written after being inspired from hearing lyrics of a good Pakistani Rock Band Auz. ##