कश पे कश मैं लगाता गया…
हर तकलीफ़, हर दर्द, धुंए में उड़ाता गया।
“ये बस आख़िरी है”, कह -कहकर ख़ुद को समझाता गया,
कुछ इस तरह एक और, फिर एक और मैं सुलगाता गया…धीरे धीरे अपनों को अपने से दूर मैं भगाता गया,
एक तड़पाती मौत को करीब, और करीब, मैं बुलाता गया।
पर एक बार मरना मंज़ूर, हर रोज़ मरना गंवारा ना गया,
इसीलिए कश पे कश, कश पे कश मैं लगाता गया…~रबी
[ I kept on smoking one, then another one…
Every problem, every pain, I smoked them out from inside,
‘I swear, this one is my last’, I kept on saying to myself,
And this way, kept on smoking one, then another one…
Slowly and slowly, I kept on distancing my loved ones,
And kept on asking the death to come near once.
But I was ready to die for once and all, I could not bear to die little by little everyday,
And that is why, I kept on smoking, then smoking another one. ]