नहीं आता
लोग पूछते हैं आज कल तेरा संदेशा नहीं आता, क्या करूँ उस बिन लिखूं क्या समझ नहीं आता। कुछ लिख लेता था उसे सोच-सोच कर पहले तो, अब तो उसे याद कर भी दिल में कोई ख़याल नहीं आता। जो लिखने लगता था, कहीं का शुरू कहीं निकल जाता, उसे सामने बैठा, खुद उसका अक्स-इ-बयाँ बन जाता। आज भी उन बेनाम नज़्मों से उसकी खुशबू आती है, पर उन्हें आँखों से लगाने का जज़्बात अब फिलहाल नहीं आता। ...