बस  इतना  सा  कर  सकते  हो ?

जब चलूँ मैं, तुम चलो। जब रुक पडूँ, तुम रुके रहो। क्या इतना तुम कर सकते हो ? बस इतना सा कर सकते हो ? जो ख़ुशी मिले, तुम एहसास हो, जिससे हँसी मिले, तुम काश हो, ना हो अफ़सोस कभी इस बात का, तुम आस हो, पर नहीं पास हो। जब डाँटूं, थोड़ा सुन लो, बाद जितना बुरा भला कहो, क्या इतना तुम कर सकते हो ? बस इतना सा कर सकते हो ? ...

January 28, 2016  · #331

बिसात

खुद ही लिख लिया कर मुख़्तसर ऐ कलम। तुझ पे उँगलियाँ फेरना मेरे बस की अब बात नहीं। रूह काँप जाती है तुझमें स्याहियाँ उड़ेलते, रबी। अब रबी कहलाने की मेरी कोई बिसात नहीं। ~रबी [ You please write yourself a little bit, my pen, I don’t have the capability to handle you anymore, My soul shivers to ink your inside, Rabi. I don’t deserve to be called Rabi anymore. ] ...

December 2, 2015  · #330

फसाद

मेरे दिल में क्या छुपा है, मेरे मन में क्या बसा है, अगर वो जान जाता, मेरा ईमान पहचान पाता। जो तकलीफ है उसे मुझसे , जो फसाद है मुझे उससे, शायद मैं बता पाता, शायद वो खुद समझ जाता। ~रबी [ What’s hiding in my heart, why’s residing in my mind, If he would have found out, he would have known my honesty, The pain that I have from him, the quarrel that I have with him, May be I might have told, may be he himself might have understood. ] ...

November 2, 2015  · #329

सॉंस  जायेगी  जब  तुम  जाओगे।

हम जाएंगे तो तुम आओगे, हम आएंगे तो उठके चले जाओगे, यूँ आने से जाने का सिलसिला कबसे कब तक निभाओगे ? चलो क्यों न ऐसा करें, तुम चाहो तो ये फैसला करें, साँस आएगी जब तुम आओगे। सॉंस जायेगी जब तुम जाओगे। ~रबी [ When I will go, then only you will come; when I will enter, you will walk away, Till when are you going to continue like this? OK, let’s do one thing, You be the judge and the jury for this. My breath will come with you, My breath will go with you. ] ...

October 2, 2015  · #328

फ़रियाद

क्यों बैठा रहे कि आके मेरी कोई फ़रियाद सुने, कभी देखा है किसी फरियादी की कोई फ़रियाद सुने ? ये ज़माना बहुत मतलबी हो चला है रबी, खुद करना है कर गुज़र, भूलकर की मेरी कोई फ़रियाद सुने। ~रबी [ Why do you keep waiting that someone will come and listen to you? Have you ever seen someone getting heard nowadays? This world has become so self-centred Rabi, Just do it, if you want to, rather than waiting for someone to help you do it. ] ...

August 5, 2015  · #326

पहले  क्यों  नहीं  आये  ज़िन्दगी  में

अब तक इतना क्यों रुलाया तुमने, पहले क्यों नहीं आये ज़िन्दगी में। हाँ नहीं ढूँढ पाया मैं तुम्हें, पर मैं तो खड़ा था यहीं। तुम ही आ जाते मुझे लेने। हर वक़्त सोचता हूँ, और कैसे मैं हँसाऊं तुम्हें, गुज़रा वक़्त जो नहीं मिला, वो कैसे वापस लाऊँ फिर मैं , जानती हो ना, तुम्हारी हँसी से, मेरे कितने घाव भर जाते हैं, एक ले दो मेरा नाम, प्यार से, मेरे बहुत से दर्द मिट जाते हैं। फिर अब तक इतना क्यों तड़पाया तुमने, बोलो ना, पहले क्यों नहीं आये ज़िन्दगी में ? ...

May 13, 2015  · #323

अजीब-ओ-गरीब

जो कहना है कहा नहीं जाता, तुम अजीब-ओ-गरीब बातें करते हो। जो मैं पूरी कर नहीं सकता, न जाने कैसी-कैसी फरियादें करते हो। क्या सुनूँ, क्या समझूँ मैं, तुम क्या कहते, क्या छुपा कर रखते हो। न जाने क्यों लगता है तुम्हें, दवा नहीं मैं, इसलिए अपना मर्ज़ दबा कर रखते हो। छोड़ो, जब दूर जाते जाते थक जाओ, तो लौट आना, मैं कहाँ मिलूंगा, इसका पता तो तुम रखते हो। ...

March 24, 2015  · #321

First Step

Sitting around, I try to make sense of this life, Sometimes it feels lovely sometimes it feels like a knife, Has been put around my neck, And someone is choking me from inside, as I gasp for breadth. I get up everyday, all pumped up to conquer, The world, but then the external and internal forces conspire and whisper, to each other. They make me lose the battle even before it starts, And that’s why I hate it so much, because I don’t even get a chance, To fight for the glory, To fight for respect, To fight these demons, Hiding inside my head. ...

February 22, 2015  · #320

फरवरी की धूप... एक बार फिर

मुरझाई थी फूल की कली , थी बेजान डाल बेल की , तेरे बसंत से खिल गयीं , जो फिर आ गयी… तू फरवरी की धूप सी। गुनगुनी खिली खिली। शिकायत तुझे इस बात की , तेरी प्यास से दिल बुझता नहीं , मगर ज़रा से में जो बुझ गयी , तेरी प्यास फिर किस काम की। तुझ बिन है रहती उदासी , तुझ संग बंध गयी ख़ुशी। अब तू है सब कुछ तभी , जो तू नहीं, तो कुछ नहीं। ...

February 21, 2015  · #319

ज़िन्दगी   बस   कुछ   इस  तरह  से गुज़र  गयी...

ज़िन्दगी कुछ इस तरह से गुज़रती गयी , कुछ उसकी याद में, कुछ उसकी आस में , कुछ उससे , कुछ उसी की बात में , मुट्ठियाँ बंद करता रहा, वो फिसलती गयी। कुछ लड़ते लड़ते, अंहम को लगी ठेस में। कुछ नाराज़गी, कुछ अफ़सोस में , मैं चीखता रहा, वो दूर होती गयी। कुछ सोचने में, कुछ समझने में , कुछ गलतफहमियों से निकालने, निकलने में , बेबस खड़ा रहा, वो धीरे धीरे कहीं खोती गयी। ...

February 19, 2015  · #317