पर तुम नहीं
यूं तो बरकत भी है और शोहरत भी, साथ कुदरत भी है, ‘उसकी’ मेहरत भी , यूं तो है चार पल की फुर्सत भी, पर तुम नहीं, पर तुम नहीं… यूं तो ज़िन्दगी भी है और साँसे भी, कहने को मंजिलें भी हैं और राहें भी, यूं तो बारिशें भी हैं और पनाहें भी , पर तुम नहीं, पर तुम नहीं… यूं तो ख़ुशी भी है और हंसी भी, दिकत्तों की नहीं कोई कमी भी, यूं तो मैं कल भी था यहीं, और आज भी, पर तुम नहीं, पर तुम नहीं… ...