फरवरी की धूप

तू फरवरी की धूप सी, गुनगुनी सी खिली खिली , तू ओस गहरी रात की, जैसे घास पे बिछी सो रही, तू हाथ की लकीर सी, किसी के नसीब में किसी के नहीं, तू दुआ किसी फ़कीर की, वो खुशनसीब जिसे मिल गयी। जिसकी तलब तो है सबको ही , तू चीनी में घुली ऐसी मिठास सी, मगर जो चाह कर भी ना मिल सकी, जैसे हया हो किसी हिजाब की। ...

February 6, 2014  · #153

यही सवाल था

वो कोई तो जाना-पहचाना सा शख्स था, जिसका आँखों में आज अक्स था। कुछ धुंधली धुंधली सी उसकी परछाई थी, अचानक ही अहातों में उतर आयी थी। कुछ तो था जो वो कहना चाहता था, पर मेरे इर्द गिर्द तो बस एक घहरा सन्नाटा था, कानो तक पहुँचती उसकी सहमी सहमी सी साँसें थी, छिपी कहीं जिनमे दम तोड़ चुकी कुछ बातें थी। कुछ दूर बढे उसके मेरी तरफ कदम, फिर सिहर गए, हाथ उठे कुछ दिखाने को, पर ठहर गए, “पीछे मत देखना"… बस इतना कहा उसने फिर मुड़ गया, नहीं आया वो साया लौटकर, एक बार जो उड़ गया, धड़कने बढ़ चली, वहीं खड़ा रहा निस्तब्ध सा, मन तो बहुत किया, पर मुड़कर नहीं देखा। ...

January 9, 2014  · #149

तकलीफों

क्यों मुस्कुरा कर मेरा वक्त ज़ाया करते हो, तुम्हारी तकलीफों से मेरी रोज बातचीत होती है। ~रबी [ Why do you waste my time by smiling, I chat with your troubles everyday. ]

January 8, 2014  · #148

खुद

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ ही तो कोई खुद ही नहीं आता, खुद ही बुलाने के बाद। ~रबी [ They would definitely have some excuse, They wouldn’t have ditched like this, After inviting themselves. ]

December 21, 2013  · #147

शायद आज कोई दूर जा रहा है...

होठ तो कुछ नहीं कहते, पर आँखों में बंद एक सैलाब है, रोकने को हाथ नहीं उठते, पर उंगलियां मुट्ठियों में कैद करने को बेताब हैं, लौट आने का झूठा वादा भी साथ है, जाने क्यों फिर दिल ये घबरा रहा है, शायद आज कोई दूर जा रहा है… कुछ बातें जो अनकही सी रह गयीं, कुछ यादें जो जल्दी में खो गयीं, कुछ लम्हे जो अधूरे से रह गए, कुछ वादे जो पूरे न कर सके, मुसाफिर, उन्हें एक बार मुड़कर तो देख ले, खामोश सीने में दिल ये कराह रहा है, शायद आज कोई दूर जा रहा है… ...

December 20, 2013  · #146

तन्हाई

हमारे कूचे को मुड़कर न देखना, ये उनकी रज़ा थी, उनकी गली में पाँव न रख सकें, ये हमारी सजा थी, ता-उम्र तन्हाई में काट देना किसे मंजूर था मगर, कुछ उनकी, कुछ हमारी वजह थी। ~रबी [ They won’t come to my area, it was their wish, I can’t set foot in their area, it was my punishment, Who wanted to live a life of this kind of loneliness, But they had some reasons, and I had some reasons. ] ...

December 13, 2013  · #145

अज्ज मेरा यार नि आया

मैं करदा रवां इंतज़ार, पर अज्ज मेरा यार नि आया। मैं पट्ट देखां, देखां कई वार, के अज्ज मेरा यार नि आया। कि कित्ता मैं गल कोई खार, जे अज्ज मेरा यार नि आया। लगदा ओंनू देखे दिन हुए हज़ार, ना अज्ज मेरा यार नि आया। आजा, अब ते कंवली होया यार, क्यों अज्ज तू मेरे यार नि आया। मेनू सौ उस दी, मैं छड्ड देना संसार, जो अज्ज मेरा यार नि आया। ...

September 11, 2013  · #138

ना-इंसाफी

तू पास रहे न रहे, तेरे पास होने का एहसास काफ़ी है, जाना है तो दिल-ओ-दिमाग से जा, बस नज़रों से दूर जाना नाकाफ़ी है। जब तक जागूं, तब तक सब्र, जब सोऊं तो तेरी फ़िक्र सताती है, मेरा क्या कसूर फिर जो, तेरे ज़िक्र भर से रूह काँप जाती है। जाऊं चाहे किसी भी कोने में, साथ मेरे होती तेरी परछाई है। बिन बताये सर पर कूद जाना, ऐ घर दी छिपकली, ये तो बहुत ही ना-इंसाफी है! ...

July 24, 2013  · #133

चार पल

चार पल की ज़िन्दगी मिली थी उधार की, एक पल गलती करने, दूजी दोहराने में गुज़ार दी , दो आखरी लम्हें जो बचे भी मुश्किल से , उन्हें हमने अफ़सोस करने में बेकार की। ~रबी [ We only got four moments to be alive, We spent one to make mistakes, the other one to repeat, And when only 2 more moments were left in our life, We wasted them to regret the mistakes we made. ] ...

May 16, 2013  · #130

चिल्लाहटें

कुछ खामोश चीखें हैं मेरे पास, पर किसी को वो सुनाई नहीं देतीं , रोज चिल्लाता हूँ मैं तकिये में सर डाल कर , अँधेरे में चिल्लाहटें दिखाई नहीं देतीं। क्यों लगता है दलदल में फंसा हुआ, अब आजादी से रुसवाई सी लगती, क्यों आता है गुस्सा इतना, जब उलझाने कमाई सी लगती। दिन के रात, रात के दिन निकल जाते हैं, बंद मुट्ठियों में रेत सुखाई नहीं रूकती, कोई नहीं गौर करता जिंदा लाशों पर, जब तक मुखोटों की परत मुरझाई नहीं उतरती। ...

April 21, 2013  · #128