उसमे थोड़ा सच भी था
उसने कहा, मेरी आँखों में देखो और बताओ क्या दिखता है? मैंने कहा, निहायत ही घटिया ये सवाल कैसा है? उसने कहा बकवास बंद करो मुझे जानना है! मैंने कहा, अच्छा फिर सुनो, तुम्हारी आँखों पर मेरा क्या मानना है। वो सामने बैठी और गौर से सुनने लगी, मैंने गाला साफ़ कर दास्तान-ए-अँखियाँ शुरू की … क्या तुमने किसी बच्चे की आँखों में देखा है ? मासूमियत के सिवा उनमे कुछ और कभी मिलता है ? वो ही मासूमियत दिखती है तुम्हारी आँखों में। एक मासूमियत जो कभी घटती नहीं, एक मासूमियत जो कभी मिटटी नहीं। ...